आज हम आपके लिये वो ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहे हैं जिसके मुखड़े को डंकल प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान माननीय प्रधान मंत्री जी को एक वरिष्ट सांसद द्वारा सुनाया गया था,और जिसे हिंदी काव्य मंचों पर, अनेक कवि सम्मेलनों में हिंदी के अनेक चर्चित कवियों द्वारा (कभी हमारे नाम के साथ और कभी बिना नाम के )सुनाया गया था ,लीजिये आप अब वह ग़ज़ल पढ़ें .
ग़ज़ल
तुम्हें खूबसूरत नज़र आ रहीं हैं
ये राहें तबाही के घर जा रहीं हैं
अभी तुमको शायद पता भी नहीं है
तुम्हारी अदाएं सितम ढा रहीं हैं
कहीं जल न जाये नशेमन हमारा
हवाएं भी शोलों को भड़का रहीं हैं
हम अपने ही घर में पराये हुए हैं
सियासी निगाहें ये समझा रहीं हैं
ग़लत फ़ैसले नाश करते रहे हैं
लहू भीगी सदियाँ ये बतला रहीं हैं
`तुषार` उनकी सोचों को सोचा तो जाना
दिलों में वो नफ़रत ही फैला रहीं हैं --नित्यानंद `तुषार`
ईमेल ntushar63@gmail.com
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