दोस्तो ,बड़े हर्ष का विषय है की आप लोग बहुत मन से हमारे ब्लॉग दिल की बात से जुड़ गए हैं
भारत वर्ष के बाद सर्वाधिक लोग इस ब्लॉग को संयुक्त राज्य अमेरिका में देख रहे रहे हैं, पढ़ रहे हैं.ब्लॉग के स्टट्स को देखने से पता चला है कि अब ये ब्लॉग भारत वर्ष,संयुक्त राज्य अमेरिका,ताईवान,मंगोलिया ,नीदरलैंड्स,जापान ,मॉरिशस और इंग्लैंड में भी देखा ,पढ़ा जा रहा है
हम उन सभी प्रवासी भारतीयों का दिल की गहराई से अभिनन्दन करते हैं,वंदन करते हैं ,जो कि अपने वतन से हज़ारों किलोमीटर दूर रहकर भी अपने देश की मिटटी से और इस देश के साहित्य से और साहित्यकारों से प्यार करते हैं, इस देश की हर चीज़ जिन्हें दुनिया की किसी भी प्रिय वस्तु से अधिक प्रिय है .
हम आपकी देश प्रेम की भावना को . आप जितने लोग हमारा ब्लॉग पढ़ते हैं उससे हमें इस पर आने की प्रेरणा तथा उर्जा मिलती है, आप सभी लोग सपरिवार ,सदैव सुखी ,संपन्न ,स्वस्थ रहें और भारत और इसके लोगों से इसी प्रकार प्रेम करते रहें , इसी कामना के साथ आज आपसे विदा लेते हैं पर आपके लिये अपनी एक ग़ज़ल भी पेश कर रहे हैं ,इस ग़ज़ल का आनंद लीजिये ,धन्यवाद.
ग़ज़ल
ज़रा देखिये आज क्या हो रहा है
जिसे देखिये वो ख़ुदा हो रहा है
नई सभ्यता की जहाँ रौशनी है
वहाँ पर अँधेरा घना हो रहा है
जिधर देखता हूँ उधर आदमी हैं
मगर आदमी लापता हो रहा है
मेरे .काफ़िले का मुक़ददर है कैसा
मेरे रहनुमा को नशा हो रहा है
इसे शहर कहना `तुषार` इक वहम है
ये चेहरों का जंगल हरा हो रहा है
आपका
नित्यानंद `तुषार`
e mail ntushar63@gmail.com
फ़ोन 9968046643
For Kavi Sammelan,Mushayera, Solo Show (Ekal Kavy Pathh) Of Poet, Er.NITYANAND `TUSHAR`, Please Contact.At, ghazalmagic@gmail.com, +91 9958130425. Thanks and Regards.
Friday, November 26, 2010
Song penned by Er. Nityanand Tushar
Ye song aap sabhi ke liye,TUM HAVAAON KI TARAH PAAS AA JAO, HUM TUMHARA RAAT DIN INTIZAR KARTE HAIN ........
http:/www.youtube.com/watch?v=hNQKUgjEnqQ&feat ure=related
http:/www.youtube.com/watch?v=hNQKUgjEnqQ&feat
दोस्तो आज आपके लिये वो ग़ज़ल प्रस्तुत है जो कि हमारे ग़ज़ल संग्रह
वो ज़माने अब कहाँ
में प्रकाशित हुई थी इस किताब को काफ़ी लोगों ने पसंद किया और ख़रीदा ,इसकी ग़ज़लें लोगों के साथ साथ कुछ लिखने वालों ? को भी इतनी पसंद आईं कीं उन्होनें इस किताब की ग़ज़लों को सामने रखकर ही ग़ज़लें लिखीं ,और न केवल लिखीं बल्कि एक कवि, शायर के रूप में लोगों के सामने उन्हीं ग़ज़लों को लेकर पेश भी हुए और हो रहे हैं ,हमने पहले भी अपने ब्लॉग दिल की बात पर लिखा था की चोरी करने वालों को सदैव पकड़ा नहीं जा सकता मगर ऐसा भी नहीं है की वे कभी पकडे ही न जाएँ ,देर सबेर पकड़ में आ ही जाते हैं ,इसका खामियाजा उन्हें कभी न कभी भुगतना ही पड़ता है .हम कभी -कभी सोचते हैं की अच्छा लिखना तो अच्छी बात है पर इतना अच्छा लिखना भी ठीक नहीं है कि उन ग़ज़लों की, या ग़ज़ल के शे`र की, और उनकी शैली की , उनके भावों की, उसी रदीफ़, काफिया,और उसी बहर में, उसी ज़मीन में ,उसके जैसी ही उसकी कार्बन कापी के रूप में लगभग चोरी ही होने लगे.
आइये वो ग़ज़ल पढ़ें जिस पर लोगों ने ग़ज़लें कहकर हमारी मेहनत का श्रेय ख़ुद लूटने की कोशिशें तेज़ कर दीं हैं ,
ग़ज़ल
चाल कैसी ये चल गयी दुनिया
मेरे ख़्वाबों की जल गयी दुनिया
अब किसी का नहीं है कोई भी
कितना आगे निकल गयी दुनिया
जो ग़लत है , ग़लत नहीं लगता
कैसे साँचे में ढल गयी दुनिया
गिरते -गिरते कहाँ चली आई
कैसे कह दें संभल गयी दुनिया
तुम में क्या है, बता नहीं सकते
तुम से मिलकर, बदल गयी दुनिया
जिसको देखो ,ज़मीर ग़ायब है
कुछ भी देखा फिसल गयी दुनिया
अब तो समझो `तुषार` दुनिया को
बातों - बातों में छल गयी दुनिया
नित्यानंद तुषार
वो ज़माने अब कहाँ
में प्रकाशित हुई थी इस किताब को काफ़ी लोगों ने पसंद किया और ख़रीदा ,इसकी ग़ज़लें लोगों के साथ साथ कुछ लिखने वालों ? को भी इतनी पसंद आईं कीं उन्होनें इस किताब की ग़ज़लों को सामने रखकर ही ग़ज़लें लिखीं ,और न केवल लिखीं बल्कि एक कवि, शायर के रूप में लोगों के सामने उन्हीं ग़ज़लों को लेकर पेश भी हुए और हो रहे हैं ,हमने पहले भी अपने ब्लॉग दिल की बात पर लिखा था की चोरी करने वालों को सदैव पकड़ा नहीं जा सकता मगर ऐसा भी नहीं है की वे कभी पकडे ही न जाएँ ,देर सबेर पकड़ में आ ही जाते हैं ,इसका खामियाजा उन्हें कभी न कभी भुगतना ही पड़ता है .हम कभी -कभी सोचते हैं की अच्छा लिखना तो अच्छी बात है पर इतना अच्छा लिखना भी ठीक नहीं है कि उन ग़ज़लों की, या ग़ज़ल के शे`र की, और उनकी शैली की , उनके भावों की, उसी रदीफ़, काफिया,और उसी बहर में, उसी ज़मीन में ,उसके जैसी ही उसकी कार्बन कापी के रूप में लगभग चोरी ही होने लगे.
आइये वो ग़ज़ल पढ़ें जिस पर लोगों ने ग़ज़लें कहकर हमारी मेहनत का श्रेय ख़ुद लूटने की कोशिशें तेज़ कर दीं हैं ,
ग़ज़ल
चाल कैसी ये चल गयी दुनिया
मेरे ख़्वाबों की जल गयी दुनिया
अब किसी का नहीं है कोई भी
कितना आगे निकल गयी दुनिया
जो ग़लत है , ग़लत नहीं लगता
कैसे साँचे में ढल गयी दुनिया
गिरते -गिरते कहाँ चली आई
कैसे कह दें संभल गयी दुनिया
तुम में क्या है, बता नहीं सकते
तुम से मिलकर, बदल गयी दुनिया
जिसको देखो ,ज़मीर ग़ायब है
कुछ भी देखा फिसल गयी दुनिया
अब तो समझो `तुषार` दुनिया को
बातों - बातों में छल गयी दुनिया
नित्यानंद तुषार
Thursday, November 25, 2010
तुम्हें खूबसूरत नज़र आ रहीं हैं----- --नित्यानंद `तुषार`
आज हम आपके लिये वो ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहे हैं जिसके मुखड़े को डंकल प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान माननीय प्रधान मंत्री जी को एक वरिष्ट सांसद द्वारा सुनाया गया था,और जिसे हिंदी काव्य मंचों पर, अनेक कवि सम्मेलनों में हिंदी के अनेक चर्चित कवियों द्वारा (कभी हमारे नाम के साथ और कभी बिना नाम के )सुनाया गया था ,लीजिये आप अब वह ग़ज़ल पढ़ें .
ग़ज़ल
तुम्हें खूबसूरत नज़र आ रहीं हैं
ये राहें तबाही के घर जा रहीं हैं
अभी तुमको शायद पता भी नहीं है
तुम्हारी अदाएं सितम ढा रहीं हैं
कहीं जल न जाये नशेमन हमारा
हवाएं भी शोलों को भड़का रहीं हैं
हम अपने ही घर में पराये हुए हैं
सियासी निगाहें ये समझा रहीं हैं
ग़लत फ़ैसले नाश करते रहे हैं
लहू भीगी सदियाँ ये बतला रहीं हैं
`तुषार` उनकी सोचों को सोचा तो जाना
दिलों में वो नफ़रत ही फैला रहीं हैं --नित्यानंद `तुषार`
ईमेल ntushar63@gmail.com
ग़ज़ल
तुम्हें खूबसूरत नज़र आ रहीं हैं
ये राहें तबाही के घर जा रहीं हैं
अभी तुमको शायद पता भी नहीं है
तुम्हारी अदाएं सितम ढा रहीं हैं
कहीं जल न जाये नशेमन हमारा
हवाएं भी शोलों को भड़का रहीं हैं
हम अपने ही घर में पराये हुए हैं
सियासी निगाहें ये समझा रहीं हैं
ग़लत फ़ैसले नाश करते रहे हैं
लहू भीगी सदियाँ ये बतला रहीं हैं
`तुषार` उनकी सोचों को सोचा तो जाना
दिलों में वो नफ़रत ही फैला रहीं हैं --नित्यानंद `तुषार`
ईमेल ntushar63@gmail.com
Tuesday, November 23, 2010
आपके लिये आज एक और ग़ज़ल,
ये ग़ज़ल मेरे ग़ज़ल संग्रह
सितम की उम्र छोटी है
में प्रकाशित हुई थी
ग़ज़ल
हमारे रहनुमाओं ने यहाँ क्या - क्या नहीं देखा
जो मंज़िल की तरफ़ जाये वही रस्ता नहीं देखा
मुनासिब था , ज़रूरी था , वतन हक़दार था जिसका
वतन के हुक्मरानों ने वही सपना नहीं देखा
कभी रोटी, कभी कपड़ा ,कभी घर की परेशानी
मुसीबत साथ है उसके, उसे तन्हा नहीं देखा
जो दुनिया की हक़ीक़त है अभी तुमने नहीं देखी
अभी गुलशन ही देखा है ,अभी सहरा नहीं देखा
कभी दुल्हन जलाते हैं ,कभी हम बलि चढाते हैं
अभी हमने मुहब्बत का सही चेहरा नहीं देखा
सफ़र में हैं तो मंजिल पर पहुँच कर ही रुकेंगे हम
कभी ठहरा हुआ हमने कहीं झरना नहीं देखा
`तुषार` उसको ज़रुरत है तो मेरे पास वो आये
कभी प्यासे के घर आते कोई दरिया नहीं देखा
......नित्यानंद तुषार
Monday, November 22, 2010
कृपया बताएं कि ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी ?
ग़ज़ल
अधूरी ज़िन्दगी महसूस होती है
मुझे तेरी कमी महसूस होती है
मुझे देखा ,मुझे सोचा ,मुझे भूले
मुझे ये बात भी महसूस होती है
हमेशा साथ रहने की क़सम खाई
क़सम तेरी बड़ी महसूस होती है
बदन तेरा है उसमें जान मेरी है
तुझे क्या ये कभी महसूस होती है
तुषार उसको बहुत दिन से नहीं देखा
इन आँखों में नमी महसूस होती है
नित्यानंद तुषार
फ़ोन 9968046643
ई मेल ntushar63@gmail.com
फ़ोन 9968046643
ई मेल ntushar63@gmail.com
Saturday, November 20, 2010
दोस्तो
आज आप के लिये एक ग़ज़ल और प्रस्तुत है
ग़ज़ल
एक पत्थर पिघलते देखा है
उसको नज़रें बदलते देखा है
एक दिन रौशनी करेंगे हम
एक दिन रौशनी करेंगे हम
हमने सूरज निकलते देखा है
ज़िन्दगी ,ज़िन्दगी नहीं लगती
हमने रिश्तों को जलते देखा है
अच्छे- अच्छों को ढलते देखा है
लोग कहते `तुषार`को हमने
गिरते- गिरते सँभलते देखा है
नित्यानंद तुषार
फ़ोन 9968046643 (india)
Sunday, November 14, 2010
आज आपके लिए एक ग़ज़ल पेश है, लेकिन उससे पहले कुछ बातें
ब्लॉग के स्टट्स को देखने से पता चला है कि ये ब्लॉग अमेरिका ,मौरीशश,इंग्लैंड के साथ- साथ हमारे देश भारत में भी देखा ,पढ़ा जा रहा है हमें ख़ुशी है कि ब्लॉग आपको पसंद आ रहा है .कुछ मित्रों के फ़ोन तथा ब्लॉग की टिप्पणियों से ये पता लगा है . आप हमें अपना कोई भी सुझाव या किसी कार्य क्रम में भाग लेने के लिए ntushar@gmail .com पर संपर्क कर सकते हैं. हम आपके लिए कवि सम्मलेन, ग़ज़ल संध्या ,हास्य कवि सम्मलेन ,मुशायरा,संगीतमयी ग़ज़ल संध्या भी आयोजित कर सकते हैं .हमारे पास इसका अनुभव भी है
कुछ मित्रों द्वारा ये बात भी संज्ञान में लाई गई है की आपकी ग़ज़लों से मिलती जुलती ग़ज़लें भी देखने में आ रहीं हैं ,उनका कहना है की ऐसा लगता है कि जैसे आपकी ग़ज़ल को सामने रखकर ही ग़ज़ल कही गई हो , उनका यह भी कहना है कि ऐसा करने वाले उन्हीं ग़ज़लों को काफ़ी जगह सुना भी रहे हैं ,उन सभी मित्रों से यही कहना है कि आप परेशान न हों ,ये निंदनीय कार्य तो एक ज़माने से लोग करते आये हैं ,लेकिन असल, असल है और नक़ल. नक़ल है अगर ऐसा न होता तो आप इस तरह की हरकतों का नोटिस कैसे ले पाते .कैसे पकड़ते .
ये कोई ज़रूरी नहीं है कि ग़ज़ल की कॉपी करने वाले या उस में से कुछ पंक्तियाँ लेने वाले को पकड़ ही लिया जाये पर कभी- कभी ऐसे लोग पकड़ में आ भी जाते हैं.साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी व्यापक और प्रसिद्ध पत्रिका में छपी हमारी ग़ज़ल को,एक लेखक के द्वारा अपने नाम से छापे जाने पर जब हमारे द्वारा आपत्ति की गई तो वो गिडगिडाने लगे , अब भी जब हमारी नज़र में ऐसे मामले आते हैं या आप जैसे पाठकों द्वारा लाये जाते हैं तो सिवाय शर्मिंदगी के,उन लोगों के पास कोई चारा नहीं रहता ,कोई पैसों की पेशकश करता है तो कोई माफ़ी माँगता है ,क्या करें ये सब तो लिखने वालों के साथ होता ही रहता है .
अभी कुछ साल पहले एक मशहूर गायक द्वारा एक ग़ज़ल गाई गई थी जिसे उन्होंने अपने एल्बम में भी रखा ,.उन्होंने अपने एल्बम का नाम भी हमारी ग़ज़ल की पंक्ति में आए एक शब्द के नाम पर रखा , प्रोमो में भी टीवी पर उन्होंने ग़ज़ल की वही पंक्ति विडियो में बार बार दिखाई जो की हमारी ग़ज़ल से उठाई थी और ग़ज़ल भी वो ग़ज़ल जो की हमारे ग़ज़ल संग्रह सितम की उम्र छोटी है में 1996 में छप चुकी थी और 1996 से पूर्व हमारे द्वारा अनेक स्थानों पर पढ़ी जा चुकी थी, उस ग़ज़ल का चरबा किया गया और एक पंक्ति हू बहू हू लगा ली गई,इतना ही नहीं कुछ काफिए भी लगभग वही फिट किये गए और उनमें भाव बदलने की असफल कोशिश भी साफ़ नज़र आ रही थी .
एक उदाहरण और याद आ रहा है . भारत के एक बहुत ही प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक का पिछले दिनों आया एल्बम भी उसी ग़ज़ल का चरबा करके बनाई गई ,ग़ज़ल से सजा हुआ था. इस बार पंक्ति के आख़िरी दो शब्दों ,हो गई के स्थान पर, कर दी ,किया गया और और अपनी ग़ज़ल की पंक्ति में हमारी ग़ज़ल की पंक्ति के तीन शब्दों का क्रम बदल दिया गया, और ग़ज़ल की वही की वही पंक्ति रख दी और ऐसा करने वाले वो लोग हैं जिन्हें गायक महोदय भी शायद बड़ा शायर समझते हैं .चरबा करने वाले तो ये काम करते ही रहते हैं कहाँ तक इनकी चर्चा करें .अनेक कवियों की ग़ज़लों में हमारे शेर झलकते रहते हैं पर सिवाय मुस्कुराने के क्या किया जा सकता है ,जब वो सामने आने और ज़िक्र छिड़ने पर बुरी तरह झेंप जाते हैं ,इनमें हिंदी के एक बहुत ज़्यादा छपने वाले ग़ज़लकार को भी गिना जा सकता है .
तेज़ी से चर्चित होने के लिए यदि कोई और कवि ? इस रास्ते का अनुसरण करता दिख जाये तो आप आश्चर्य मत करना .आज जो ग़ज़ल आपके लिए दे रहे हैं वो भी उसी संग्रह `सितम की उम्र छोटी है` से ली गई है जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया है तथा जिसके चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं .यदि आपको इस ग़ज़ल की झलक भी किसी चर्चित होते हुए कवि? की रचना में मिल जाये तो चकित मत होना . हमें तो कोई कभी न कभी बता ही देगा क्यूंकि हज़ारों लोगों ने जिन्होंने हमारे संग्रह खरीद रखे हैं उनकी नज़र में ये लोग आते रहते हैं और देर सबेर वे हमें सूचित भी करते रहते हैं ,आज इतना ही .
आइये ग़ज़ल का आनंद लें .
ग़ज़ल
नदी में बाढ़ आए तो किनारे टूट जाते हैं
अधिकतर जोश में बंधन सभी के टूट जाते हैं
सितारों की चमक तुममें तो क्यूँ मगरुर होते हो
कभी वो वक़्त आता है सितारे टूट जाते हैं
हमारी आँखों में जो ख़्वाब उनकी जिंदगी कितनी
बहुत कच्चे घरोंदे तो हवा से टूट जाते हैं
अगर वो हट गए पीछे तो इसमें क्या नयापन है
बुरे हालात में अक्सर सहारे टूट जाते हैं
कभी दुनिया की बंदिश से कभी दौलत की ताक़त से
`तुषार` अक्सर मुहब्बत के इरादे टूट जाते हैं
नित्यानंद `तुषार`
फ़ोन 9968046643
ब्लॉग के स्टट्स को देखने से पता चला है कि ये ब्लॉग अमेरिका ,मौरीशश,इंग्लैंड के साथ- साथ हमारे देश भारत में भी देखा ,पढ़ा जा रहा है हमें ख़ुशी है कि ब्लॉग आपको पसंद आ रहा है .कुछ मित्रों के फ़ोन तथा ब्लॉग की टिप्पणियों से ये पता लगा है . आप हमें अपना कोई भी सुझाव या किसी कार्य क्रम में भाग लेने के लिए ntushar@gmail .com पर संपर्क कर सकते हैं. हम आपके लिए कवि सम्मलेन, ग़ज़ल संध्या ,हास्य कवि सम्मलेन ,मुशायरा,संगीतमयी ग़ज़ल संध्या भी आयोजित कर सकते हैं .हमारे पास इसका अनुभव भी है
कुछ मित्रों द्वारा ये बात भी संज्ञान में लाई गई है की आपकी ग़ज़लों से मिलती जुलती ग़ज़लें भी देखने में आ रहीं हैं ,उनका कहना है की ऐसा लगता है कि जैसे आपकी ग़ज़ल को सामने रखकर ही ग़ज़ल कही गई हो , उनका यह भी कहना है कि ऐसा करने वाले उन्हीं ग़ज़लों को काफ़ी जगह सुना भी रहे हैं ,उन सभी मित्रों से यही कहना है कि आप परेशान न हों ,ये निंदनीय कार्य तो एक ज़माने से लोग करते आये हैं ,लेकिन असल, असल है और नक़ल. नक़ल है अगर ऐसा न होता तो आप इस तरह की हरकतों का नोटिस कैसे ले पाते .कैसे पकड़ते .
ये कोई ज़रूरी नहीं है कि ग़ज़ल की कॉपी करने वाले या उस में से कुछ पंक्तियाँ लेने वाले को पकड़ ही लिया जाये पर कभी- कभी ऐसे लोग पकड़ में आ भी जाते हैं.साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी व्यापक और प्रसिद्ध पत्रिका में छपी हमारी ग़ज़ल को,एक लेखक के द्वारा अपने नाम से छापे जाने पर जब हमारे द्वारा आपत्ति की गई तो वो गिडगिडाने लगे , अब भी जब हमारी नज़र में ऐसे मामले आते हैं या आप जैसे पाठकों द्वारा लाये जाते हैं तो सिवाय शर्मिंदगी के,उन लोगों के पास कोई चारा नहीं रहता ,कोई पैसों की पेशकश करता है तो कोई माफ़ी माँगता है ,क्या करें ये सब तो लिखने वालों के साथ होता ही रहता है .
अभी कुछ साल पहले एक मशहूर गायक द्वारा एक ग़ज़ल गाई गई थी जिसे उन्होंने अपने एल्बम में भी रखा ,.उन्होंने अपने एल्बम का नाम भी हमारी ग़ज़ल की पंक्ति में आए एक शब्द के नाम पर रखा , प्रोमो में भी टीवी पर उन्होंने ग़ज़ल की वही पंक्ति विडियो में बार बार दिखाई जो की हमारी ग़ज़ल से उठाई थी और ग़ज़ल भी वो ग़ज़ल जो की हमारे ग़ज़ल संग्रह सितम की उम्र छोटी है में 1996 में छप चुकी थी और 1996 से पूर्व हमारे द्वारा अनेक स्थानों पर पढ़ी जा चुकी थी, उस ग़ज़ल का चरबा किया गया और एक पंक्ति हू बहू हू लगा ली गई,इतना ही नहीं कुछ काफिए भी लगभग वही फिट किये गए और उनमें भाव बदलने की असफल कोशिश भी साफ़ नज़र आ रही थी .
एक उदाहरण और याद आ रहा है . भारत के एक बहुत ही प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक का पिछले दिनों आया एल्बम भी उसी ग़ज़ल का चरबा करके बनाई गई ,ग़ज़ल से सजा हुआ था. इस बार पंक्ति के आख़िरी दो शब्दों ,हो गई के स्थान पर, कर दी ,किया गया और और अपनी ग़ज़ल की पंक्ति में हमारी ग़ज़ल की पंक्ति के तीन शब्दों का क्रम बदल दिया गया, और ग़ज़ल की वही की वही पंक्ति रख दी और ऐसा करने वाले वो लोग हैं जिन्हें गायक महोदय भी शायद बड़ा शायर समझते हैं .चरबा करने वाले तो ये काम करते ही रहते हैं कहाँ तक इनकी चर्चा करें .अनेक कवियों की ग़ज़लों में हमारे शेर झलकते रहते हैं पर सिवाय मुस्कुराने के क्या किया जा सकता है ,जब वो सामने आने और ज़िक्र छिड़ने पर बुरी तरह झेंप जाते हैं ,इनमें हिंदी के एक बहुत ज़्यादा छपने वाले ग़ज़लकार को भी गिना जा सकता है .
तेज़ी से चर्चित होने के लिए यदि कोई और कवि ? इस रास्ते का अनुसरण करता दिख जाये तो आप आश्चर्य मत करना .आज जो ग़ज़ल आपके लिए दे रहे हैं वो भी उसी संग्रह `सितम की उम्र छोटी है` से ली गई है जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया है तथा जिसके चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं .यदि आपको इस ग़ज़ल की झलक भी किसी चर्चित होते हुए कवि? की रचना में मिल जाये तो चकित मत होना . हमें तो कोई कभी न कभी बता ही देगा क्यूंकि हज़ारों लोगों ने जिन्होंने हमारे संग्रह खरीद रखे हैं उनकी नज़र में ये लोग आते रहते हैं और देर सबेर वे हमें सूचित भी करते रहते हैं ,आज इतना ही .
आइये ग़ज़ल का आनंद लें .
ग़ज़ल
नदी में बाढ़ आए तो किनारे टूट जाते हैं
अधिकतर जोश में बंधन सभी के टूट जाते हैं
सितारों की चमक तुममें तो क्यूँ मगरुर होते हो
कभी वो वक़्त आता है सितारे टूट जाते हैं
हमारी आँखों में जो ख़्वाब उनकी जिंदगी कितनी
बहुत कच्चे घरोंदे तो हवा से टूट जाते हैं
अगर वो हट गए पीछे तो इसमें क्या नयापन है
बुरे हालात में अक्सर सहारे टूट जाते हैं
कभी दुनिया की बंदिश से कभी दौलत की ताक़त से
`तुषार` अक्सर मुहब्बत के इरादे टूट जाते हैं
नित्यानंद `तुषार`
फ़ोन 9968046643
Friday, November 12, 2010
दोस्तो, आज आप के लिए एक और ग़ज़ल ,पर इससे पहले कुछ बातें भीं ,कल जो मेरे द्वारा लिखा गया, उस पर कुछ कवि मित्रों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, कुछ ने फ़ोन किया तो कुछ ने फ़ोन पर सन्देश दिये, उनका कहना था, जो आपने लिखा है वह सच है , मैंने कहा की अगर कवि भी सच नहीं कहेगा तो फिर सच कौन कहेगा ,बरसों पहले मैंने एक शे`र कहा था -
उसे जो लिखना होता है वही वो लिख के रहती* है
क़लम को सर क़लम होने का कोई डर नहीं होता
(*क़लम पुल्लिंग है, मगर हिंदी में स्त्रीलिंग के रूप में प्रचलित है इसलिए रहती लिखा है, जिन मित्रों को ये अच्छा न लगे वो इसे रहता भी पढ़ सकते हैं )
चलिए छोड़िये इसे , ग़ज़ल पढ़िए
ग़ज़ल
मुक़ददर आज़माना चाहते हैं
तुम्हें अपना बनाना चाहते हैं
तुम्हारे वास्ते क्या सोचते हैं
निगाहों से बताना चाहते हैं
ग़लत क्या है, जो हम दिल माँग बैठे
परिन्दे भी ठिकाना चाहते हैं
परिस्थ्तियाँ ही अक्सर रोकतीं हैं
मुहब्बत सब निभाना चाहते हैं
बहुत दिन से इन आँखों में हैं आँसू
`तुषार` अब मुस्कुराना चाहते हैं
नित्यानंद`तुषार`
फ़ोन 9968046643
उसे जो लिखना होता है वही वो लिख के रहती* है
क़लम को सर क़लम होने का कोई डर नहीं होता
(*क़लम पुल्लिंग है, मगर हिंदी में स्त्रीलिंग के रूप में प्रचलित है इसलिए रहती लिखा है, जिन मित्रों को ये अच्छा न लगे वो इसे रहता भी पढ़ सकते हैं )
चलिए छोड़िये इसे , ग़ज़ल पढ़िए
ग़ज़ल
मुक़ददर आज़माना चाहते हैं
तुम्हें अपना बनाना चाहते हैं
तुम्हारे वास्ते क्या सोचते हैं
निगाहों से बताना चाहते हैं
ग़लत क्या है, जो हम दिल माँग बैठे
परिन्दे भी ठिकाना चाहते हैं
परिस्थ्तियाँ ही अक्सर रोकतीं हैं
मुहब्बत सब निभाना चाहते हैं
बहुत दिन से इन आँखों में हैं आँसू
`तुषार` अब मुस्कुराना चाहते हैं
नित्यानंद`तुषार`
फ़ोन 9968046643
Thursday, November 11, 2010
ग़ज़लों पर युवा मित्रों के फ़ोन आना इस बात को साबित करता है की कविताएँ अब लोगों के दिलों में अपनी जगह तलाश रहीं हैं ,वहीँ एक बात ये भी देखने में आ रही है कि कविताएँ अपने साथ काफ़ी दोष भी ढो रहीं हैं
जो व्यक्ति अपनी चार पंक्तियों की तीन तुकें भी ठीक से नहीं मिला पाता है , उसे मार्केटिंग के दम पर मोस्ट पोपुलर पोएट बताया जा रहा है , जो कविता का क ,ख ग ही जानता है वो नवोदित कवि भी ग़लत तुकें मिलाने कि ग़लती नहीं कर सकता , पर ग़लत तुकांत लगाकर अपनी चार -चार पंक्तियाँ सुनाने वाले को हमारे कुछ टी वी . चैनल कितना महिमा मंडित कर रहे हैं, आए दिन चर्चा में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं ,या ख़ुद उनके द्वारा ही कोई जुगाड़ बना लिया गया है जिससे कि आए दिन टी.वी पर दिखो औरकविता के बाज़ार में बिको .
ख़ुद को ,ख़ुद ही स्टार पोएट ,सेलेब्रेटी, विश्व प्रसिद्ध ,और न जाने क्या- क्या कहो,लिखो तथा अपनी मार्केटिंग टीम से लिखवाओ,कहलवाओ .जिस कविता ? में ,तुकांत भी सही नहीं हैं , उसी कविता? को मार्केटिंग टीम के द्वारा ग्रेट पोएम कहकर आँखों में धूल झोंकी जा रही है . उसी कवि? को मोस्ट पोपुलर बताया जा रहा है .और चैनल में किसी के दिमाग़ में ये नहीं आ रहा है कि किसी अयोग्य व्यक्ति को अच्छे विशेषणों के साथ प्रस्तुत करने पर चैनल के विषय में लोग क्या सोचेंगे.कुछ चैनल एंकर उन्हें ऐसे संबोधनों से संबोधित करते हैं कि हँसी आती है, और बरबस मुँह से यही निकलता है कि ये मुँह और मसूर की दाल , इससे . चैनल की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है ,दुनिया के १२० से अधिक देशों में हिंदी पढ़ाई जा रही है वहां के हिंदी के विद्यार्थी ऐसे तुक्कड़ों को देख कर , सुन कर देश के कवियों की क्या छवि अपने मन में बनायेंगे इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है, जिस देश के कवियों को रविन्द्र नाथ टैगोर ,सूरदास ,तुलसी दास आदि के नाम से जाना जाता है अब मार्केटिंग के दम से क्या ऐसे - ऐसे ही तुक्कड़ों से जाना जायेगा ? कॉलेज के बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं, क्यूंकि अभी वो परिपक्व हो रहे है.
कुछ बेकार लोग एक जगह मिले योजना बनाई और फ़र्ज़ी बातें कर कर के एक तुक्कड़ को प्रचारित करना प्रारंभ कर दिया. तुक्कड़ ने भी अपने बारे में ऐसी ऐसी बातें कीं , जिनका सच्चाई से कोई वास्ता ही नहीं है पर कौन जाँच करने जा रहा है ,कुछ भी बोलो और उल्लू सीधा करो . नए बच्चे जिन चीज़ों को कविता के नाम पर सुन रहे हैं वो अधिकांशतः अश्लील, अमर्यादित, स्तरहीन और शर्मनाक टिप्पणियाँ हैं,जब आप कविता सुनाने के लिए आए हैं,ख़ुद को कवि कहते भी हैं , और अगर आपके पास कविता है तो सुनाइए, इधर उधर की बातें क्यूँ करते हैं?
कवियों के नाम पर ऐसे लोग क्या हैं ,जिन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने स्वार्थ के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ,ऐसे लोगों के लिए कोई नाम आप लोग स्वयं तय करें . दो -तीन घंटे के शो में कविता के नाम पर अपरिपक्व, फूहड़ किस्म की अधकचरी दस बारह लाइन दी जा रहीं हैं और पिलाया जा रहा है बच्चों को वो ज़हर जो उन्हें भटकाने के अलावा और किसी काम का नहीं है ,जो बच्चों को आगे चलकर तबाह भी कर सकता है , और इसके बदले में उन मासूमों से लाखों रुपये की वसूली भी की जा रही है .उन लाखों रुपये से फिर दुष्प्रचार करके आगे नए शिकार फंसाए जा रहे हैं ,मीडिया और...पीडिया व्यर्थ में मोहित और सम्मोहित हो रहे हैं और दर्शकों के ऊपर तुक्कड़ों को थोप रहे हैं.इस तरह मीडिया और ....पीडिया दोनों पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है .
दो चार किराए के लड़के, आकर्षक बाज़ारी भाषा का प्रयोग कर बच्चों को बहकाने के काम में लगे हुए हैं ,यहीं से बच्चे धोखे और झाँसे में आने शुरू हो जाते हैं.,ऐसा प्रतीत होता है की पूरी टीम लगी है जो इस तरह का प्रोपेगेंडा करती है कि लोगों को भ्रम हो कि कितना महान कवि है, और नादान बच्चे इन्हीं चालाकियों के शिकार हो रहे हैं , ऐसे लोग पहले कुछ लिख कर कहीं लगवा देंगे, फिर उसको अलग- अलग जगह पर नेट के माध्यम से फैलाने में जुट जायेंगे , ये कितना बड़ा धोखा है, फ़र्ज़ी बातों का हवाला दे देकर लोगों को मूर्ख बनाने में पूरी टीम लगी प्रतीत होती है .
मैं ख़ुद एक इंजिनियर हूँ और मुझे इंजीनियरिंग के छात्रों का इस तरह छला जाना दुखी करता है, इसी दुःख की अभिव्यक्ति मैंने पिछले दिनों फेस बुक पर कविताओं के माध्यम से ही की है. आप उन्हें मेरी वाल पर ओल्डर पोस्ट्स में, पढ़ सकते हैं.
लीजिये इस ग़ज़ल का आनंद लीजिये.
ग़ज़ल
आपको चाहते हैं ख़ुशी की तरह
आप दिल में बसें रौशनी की तरह
आप अच्छी तरह जानते हैं हमें
देखते हैं मगर अजनबी की तरह
किस तरह से जियेंगे बिना आपके
आप क्यूँ हो गए ज़िन्दगी की तरह
आपको जो लिखा था कभी ख़त वही
खो गया है कहीं आदमी की तरह
दूर तक था अँधेरा अभी तक `तुषार`
वो यहाँ आ गए चाँदनी की तरह
नित्यानंद ` तुषार``
फ़ोन 9968046643
जो व्यक्ति अपनी चार पंक्तियों की तीन तुकें भी ठीक से नहीं मिला पाता है , उसे मार्केटिंग के दम पर मोस्ट पोपुलर पोएट बताया जा रहा है , जो कविता का क ,ख ग ही जानता है वो नवोदित कवि भी ग़लत तुकें मिलाने कि ग़लती नहीं कर सकता , पर ग़लत तुकांत लगाकर अपनी चार -चार पंक्तियाँ सुनाने वाले को हमारे कुछ टी वी . चैनल कितना महिमा मंडित कर रहे हैं, आए दिन चर्चा में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं ,या ख़ुद उनके द्वारा ही कोई जुगाड़ बना लिया गया है जिससे कि आए दिन टी.वी पर दिखो औरकविता के बाज़ार में बिको .
ख़ुद को ,ख़ुद ही स्टार पोएट ,सेलेब्रेटी, विश्व प्रसिद्ध ,और न जाने क्या- क्या कहो,लिखो तथा अपनी मार्केटिंग टीम से लिखवाओ,कहलवाओ .जिस कविता ? में ,तुकांत भी सही नहीं हैं , उसी कविता? को मार्केटिंग टीम के द्वारा ग्रेट पोएम कहकर आँखों में धूल झोंकी जा रही है . उसी कवि? को मोस्ट पोपुलर बताया जा रहा है .और चैनल में किसी के दिमाग़ में ये नहीं आ रहा है कि किसी अयोग्य व्यक्ति को अच्छे विशेषणों के साथ प्रस्तुत करने पर चैनल के विषय में लोग क्या सोचेंगे.कुछ चैनल एंकर उन्हें ऐसे संबोधनों से संबोधित करते हैं कि हँसी आती है, और बरबस मुँह से यही निकलता है कि ये मुँह और मसूर की दाल , इससे . चैनल की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है ,दुनिया के १२० से अधिक देशों में हिंदी पढ़ाई जा रही है वहां के हिंदी के विद्यार्थी ऐसे तुक्कड़ों को देख कर , सुन कर देश के कवियों की क्या छवि अपने मन में बनायेंगे इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है, जिस देश के कवियों को रविन्द्र नाथ टैगोर ,सूरदास ,तुलसी दास आदि के नाम से जाना जाता है अब मार्केटिंग के दम से क्या ऐसे - ऐसे ही तुक्कड़ों से जाना जायेगा ? कॉलेज के बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं, क्यूंकि अभी वो परिपक्व हो रहे है.
कुछ बेकार लोग एक जगह मिले योजना बनाई और फ़र्ज़ी बातें कर कर के एक तुक्कड़ को प्रचारित करना प्रारंभ कर दिया. तुक्कड़ ने भी अपने बारे में ऐसी ऐसी बातें कीं , जिनका सच्चाई से कोई वास्ता ही नहीं है पर कौन जाँच करने जा रहा है ,कुछ भी बोलो और उल्लू सीधा करो . नए बच्चे जिन चीज़ों को कविता के नाम पर सुन रहे हैं वो अधिकांशतः अश्लील, अमर्यादित, स्तरहीन और शर्मनाक टिप्पणियाँ हैं,जब आप कविता सुनाने के लिए आए हैं,ख़ुद को कवि कहते भी हैं , और अगर आपके पास कविता है तो सुनाइए, इधर उधर की बातें क्यूँ करते हैं?
कवियों के नाम पर ऐसे लोग क्या हैं ,जिन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने स्वार्थ के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ,ऐसे लोगों के लिए कोई नाम आप लोग स्वयं तय करें . दो -तीन घंटे के शो में कविता के नाम पर अपरिपक्व, फूहड़ किस्म की अधकचरी दस बारह लाइन दी जा रहीं हैं और पिलाया जा रहा है बच्चों को वो ज़हर जो उन्हें भटकाने के अलावा और किसी काम का नहीं है ,जो बच्चों को आगे चलकर तबाह भी कर सकता है , और इसके बदले में उन मासूमों से लाखों रुपये की वसूली भी की जा रही है .उन लाखों रुपये से फिर दुष्प्रचार करके आगे नए शिकार फंसाए जा रहे हैं ,मीडिया और...पीडिया व्यर्थ में मोहित और सम्मोहित हो रहे हैं और दर्शकों के ऊपर तुक्कड़ों को थोप रहे हैं.इस तरह मीडिया और ....पीडिया दोनों पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है .
दो चार किराए के लड़के, आकर्षक बाज़ारी भाषा का प्रयोग कर बच्चों को बहकाने के काम में लगे हुए हैं ,यहीं से बच्चे धोखे और झाँसे में आने शुरू हो जाते हैं.,ऐसा प्रतीत होता है की पूरी टीम लगी है जो इस तरह का प्रोपेगेंडा करती है कि लोगों को भ्रम हो कि कितना महान कवि है, और नादान बच्चे इन्हीं चालाकियों के शिकार हो रहे हैं , ऐसे लोग पहले कुछ लिख कर कहीं लगवा देंगे, फिर उसको अलग- अलग जगह पर नेट के माध्यम से फैलाने में जुट जायेंगे , ये कितना बड़ा धोखा है, फ़र्ज़ी बातों का हवाला दे देकर लोगों को मूर्ख बनाने में पूरी टीम लगी प्रतीत होती है .
मैं ख़ुद एक इंजिनियर हूँ और मुझे इंजीनियरिंग के छात्रों का इस तरह छला जाना दुखी करता है, इसी दुःख की अभिव्यक्ति मैंने पिछले दिनों फेस बुक पर कविताओं के माध्यम से ही की है. आप उन्हें मेरी वाल पर ओल्डर पोस्ट्स में, पढ़ सकते हैं.
लीजिये इस ग़ज़ल का आनंद लीजिये.
ग़ज़ल
आपको चाहते हैं ख़ुशी की तरह
आप दिल में बसें रौशनी की तरह
आप अच्छी तरह जानते हैं हमें
देखते हैं मगर अजनबी की तरह
किस तरह से जियेंगे बिना आपके
आप क्यूँ हो गए ज़िन्दगी की तरह
आपको जो लिखा था कभी ख़त वही
खो गया है कहीं आदमी की तरह
दूर तक था अँधेरा अभी तक `तुषार`
वो यहाँ आ गए चाँदनी की तरह
नित्यानंद ` तुषार``
फ़ोन 9968046643
Tuesday, November 9, 2010
आज आपके लिए अपनी वो ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहे हैं जो कि इंडिया न्यूज़ ३१ अक्टूबर से ०६ नवम्बर के अंक में प्रकाशित हुई थी ,और जिसे काफ़ी लोगों ने पसंद भी किया था , आशा है आपको भी पसंद आएगी.
ग़ज़ल
दिल में हलचल मचा गया कोई
मुझको पागल बना गया कोई
कितने सपने क़रीब आए हैं
मेरी आँखें सजा गया कोई
सिर्फ़ वो ही नज़र में रहता है
मेरी आँखों में आ गया कोई
उससे बाहर निकल नहीं पाता
मेरे ज़ेहन पे छा गया कोई
उससे पहले उदास रहता था
मुझको जीना सिखा गया कोई
कितनी जल्दी मिली है मंज़िल , फिर
मुझको , रस्ता बता गया कोई
उसकी बातें लबों पे सजतीं हैं
मेरे दिल में समा गया कोई
................................... नित्यानंद `तुषार` - M 9968046643
ग़ज़ल
दिल में हलचल मचा गया कोई
मुझको पागल बना गया कोई
कितने सपने क़रीब आए हैं
मेरी आँखें सजा गया कोई
सिर्फ़ वो ही नज़र में रहता है
मेरी आँखों में आ गया कोई
उससे बाहर निकल नहीं पाता
मेरे ज़ेहन पे छा गया कोई
उससे पहले उदास रहता था
मुझको जीना सिखा गया कोई
कितनी जल्दी मिली है मंज़िल , फिर
मुझको , रस्ता बता गया कोई
उसकी बातें लबों पे सजतीं हैं
मेरे दिल में समा गया कोई
................................... नित्यानंद `तुषार` - M 9968046643
Monday, November 8, 2010
आज काफ़ी दिन के बाद आपसे मुलाक़ात हो पा रही है ,इस बीच दीपावली का पर्व भी आया , और हम सभी ने इसे पूरे उत्साह और हर्ष के साथ मनाया . आज कुछ अवकाश मिला है .
आज आपके लिए ग़ज़ल प्रस्तुत है .आपको ग़ज़ल कैसी लगी ? ,कृपया अपनी मूल्यवान राय देने का कष्ट करें .
ग़ज़ल
मुहब्बत की बारिश में भीगा हुआ हूँ
तेरे बाद भी, तुझमें, डूबा हुआ हूँ
हुआ कैसा जादू, अचानक, ये मुझ पर
तुझे देखते ही मैं तेरा हुआ हूँ
वो इक पल का मिलना ,बिछुड़ना सदा का
ज़रा देख , मैं कितना बिखरा हुआ हूँ
तेरी ख़ुशबू से मैं , महकता हूँ हर पल
तेरा ख़्वाब हूँ, पर , मैं ,टूटा हुआ हूँ
मुलाक़ात जिस मोड़ पर हो गई थी
अभी भी वहीँ पर मैं ठहरा हुआ हूँ
`तुषार` उसका हँसना बहुत याद आये
कोई उससे कह दे मैं उलझा हुआ हूँ
........नित्यानंद `तुषार`
mobile no. 9968046643 (india)
आज आपके लिए ग़ज़ल प्रस्तुत है .आपको ग़ज़ल कैसी लगी ? ,कृपया अपनी मूल्यवान राय देने का कष्ट करें .
ग़ज़ल
मुहब्बत की बारिश में भीगा हुआ हूँ
तेरे बाद भी, तुझमें, डूबा हुआ हूँ
हुआ कैसा जादू, अचानक, ये मुझ पर
तुझे देखते ही मैं तेरा हुआ हूँ
वो इक पल का मिलना ,बिछुड़ना सदा का
ज़रा देख , मैं कितना बिखरा हुआ हूँ
तेरी ख़ुशबू से मैं , महकता हूँ हर पल
तेरा ख़्वाब हूँ, पर , मैं ,टूटा हुआ हूँ
मुलाक़ात जिस मोड़ पर हो गई थी
अभी भी वहीँ पर मैं ठहरा हुआ हूँ
`तुषार` उसका हँसना बहुत याद आये
कोई उससे कह दे मैं उलझा हुआ हूँ
........नित्यानंद `तुषार`
mobile no. 9968046643 (india)
Subscribe to:
Posts (Atom)