प्रतिष्ठित हिन्दी पत्रिका `हँस` के नवम्बर 2011 अंक में
आप हमारी ये ग़ज़ल पूरी पढ़ सकते हैं,
यहाँ कुछ पंक्तियाँ दी जा रहीं हैं
जो दौर था बुरा, वो भी गुज़र गया
कुछ हादसे हुए , फिर मैं उबर गया
जो सच था वो कहा, तुम क्यूँ खफ़ा हुए
चेहरा बुझा है क्यूँ, पानी उतर गया
इक आदमी हुआ, इस मुल्क़ में `तुषार`
पहुँचा जहाँ न वो, उसका असर गया - - नित्यानंद तुषार `
आप हमारी ये ग़ज़ल पूरी पढ़ सकते हैं,
यहाँ कुछ पंक्तियाँ दी जा रहीं हैं
जो दौर था बुरा, वो भी गुज़र गया
कुछ हादसे हुए , फिर मैं उबर गया
जो सच था वो कहा, तुम क्यूँ खफ़ा हुए
चेहरा बुझा है क्यूँ, पानी उतर गया
इक आदमी हुआ, इस मुल्क़ में `तुषार`
पहुँचा जहाँ न वो, उसका असर गया - - नित्यानंद तुषार `