Tuesday, November 23, 2010








                  











 आपके लिये आज एक और ग़ज़ल,
 ये ग़ज़ल मेरे ग़ज़ल संग्रह
 सितम की उम्र छोटी है
 में प्रकाशित हुई थी


  ग़ज़ल

हमारे रहनुमाओं ने यहाँ क्या - क्या नहीं देखा
जो मंज़िल की तरफ़ जाये वही रस्ता नहीं देखा

मुनासिब  था , ज़रूरी  था , वतन  हक़दार  था  जिसका
वतन के हुक्मरानों   ने वही सपना नहीं देखा

कभी रोटी, कभी कपड़ा   ,कभी घर की परेशानी
मुसीबत साथ है उसके, उसे तन्हा नहीं देखा

जो दुनिया की हक़ीक़त  है अभी तुमने नहीं देखी
अभी गुलशन   ही  देखा है ,अभी सहरा  नहीं देखा

कभी दुल्हन जलाते हैं ,कभी हम बलि चढाते हैं
अभी हमने मुहब्बत का सही चेहरा नहीं देखा

सफ़र में हैं तो मंजिल पर पहुँच कर ही रुकेंगे हम
कभी ठहरा  हुआ हमने कहीं झरना नहीं देखा

`तुषार` उसको  ज़रुरत है तो मेरे पास वो आये
कभी प्यासे के घर आते कोई दरिया नहीं देखा


                  ......नित्यानंद तुषार

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