भाषण बाज़ी छोडो अब
ये लफ्फाज़ी छोडो अब
दूर करो ये नंगापन
मजमेबाज़ी छोडो अब

मजमेबाज़ी छोडो अब
ख़ुद को मत यूँ नष्ट करो
कविता को मत भ्रष्ट करो
ज्ञान चक्षु खुल जाएँगे
तुम थोडा सा कष्ट करो
एक अहिंसक युद्ध करो
कवि सम्मलेन शुद्ध करो
श्रोताओं को कविता दो
ख़ुद को आप प्रबुद्ध करो
.....नित्यानंद `तुषार`
No comments:
Post a Comment