Friday, November 26, 2010

दोस्तो आज आपके लिये  वो ग़ज़ल प्रस्तुत है जो कि हमारे ग़ज़ल संग्रह
  वो ज़माने अब कहाँ
 में प्रकाशित हुई थी इस किताब को  काफ़ी  लोगों ने  पसंद किया और ख़रीदा ,इसकी ग़ज़लें लोगों के साथ साथ कुछ लिखने वालों ? को भी इतनी पसंद आईं कीं उन्होनें इस किताब की  ग़ज़लों को सामने रखकर ही ग़ज़लें लिखीं ,और न केवल लिखीं बल्कि एक कवि, शायर के रूप में लोगों के सामने  उन्हीं ग़ज़लों को लेकर पेश भी  हुए और हो रहे हैं ,हमने  पहले भी  अपने ब्लॉग दिल की बात  पर लिखा था की चोरी करने वालों को सदैव पकड़ा नहीं जा सकता मगर ऐसा भी नहीं है की वे कभी पकडे ही न जाएँ  ,देर सबेर पकड़ में आ ही  जाते हैं ,इसका खामियाजा उन्हें कभी  न कभी भुगतना ही पड़ता है .हम कभी -कभी सोचते हैं की अच्छा लिखना तो अच्छी  बात है पर  इतना अच्छा  लिखना  भी ठीक नहीं है  कि उन ग़ज़लों की, या ग़ज़ल के शे`र  की, और उनकी शैली की , उनके भावों की, उसी रदीफ़, काफिया,और उसी बहर में, उसी ज़मीन में ,उसके जैसी ही उसकी कार्बन कापी के रूप में  लगभग  चोरी ही होने लगे.
 आइये वो ग़ज़ल पढ़ें जिस पर लोगों  ने ग़ज़लें कहकर हमारी मेहनत का श्रेय  ख़ुद लूटने  की कोशिशें तेज़ कर दीं हैं ,


                 ग़ज़ल

चाल कैसी ये चल गयी दुनिया
मेरे ख़्वाबों की जल गयी दुनिया

अब किसी का नहीं है कोई भी
कितना आगे निकल गयी दुनिया

जो ग़लत  है , ग़लत नहीं लगता
कैसे साँचे में ढल गयी दुनिया

गिरते -गिरते कहाँ चली आई
कैसे कह दें संभल गयी दुनिया

तुम में क्या है, बता नहीं सकते
तुम से मिलकर, बदल गयी दुनिया

जिसको देखो ,ज़मीर ग़ायब है
कुछ भी देखा  फिसल गयी दुनिया

अब तो समझो `तुषार` दुनिया को
बातों - बातों में छल गयी दुनिया

नित्यानंद तुषार

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा गज़ल..और पढ़वाईये इस पुस्तक से.

ajeet kumar said...

great gazal hai...closing to heart

Anonymous said...

great gazal hai...closing to heart