दोस्तो
आज आप के लिये एक ग़ज़ल और प्रस्तुत है
ग़ज़ल
एक पत्थर पिघलते देखा है
उसको नज़रें बदलते देखा है
एक दिन रौशनी करेंगे हम
एक दिन रौशनी करेंगे हम
हमने सूरज निकलते देखा है
ज़िन्दगी ,ज़िन्दगी नहीं लगती
हमने रिश्तों को जलते देखा है
अच्छे- अच्छों को ढलते देखा है
लोग कहते `तुषार`को हमने
गिरते- गिरते सँभलते देखा है
नित्यानंद तुषार
फ़ोन 9968046643 (india)
4 comments:
आप नाहक़ गुरूर करते हैं
अच्छे- अच्छों को ढलते देखा है
सुन्दर पंक्तियां ।
वाह! बेहद खूबसूरत गज़ल्।
वाह क्या बात है ... बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है !
अच्छी है साहब, जारी रखिये ...
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