कुछ नवयुवकों ने मुझसे प्रश्न किये ,उनका उत्तर दिया गया फिर कुछ प्रश्न और पूछे गए ,उनका भी उत्तर दिया गया अंत में ये प्रश्न पूछा गया ,उसका जो उत्तर दिया गया ,आपके समक्ष प्रस्तुत है .ये सारी बातचीत ,प्रश्न ,उत्तर आप face book पर मेरी वाल पर देख सकते हैं.
Ankit shukla तुषार जी आप कि बाते सत्य है तो फिर एक अंतिम सवाल ये कि जिन बड़े लोगो के अपने नाम बताये उनमे से एक वो अपना गुरु बताते है तो वो गुरुदेव और वे सब बड़े कवि लोग जिनमे से आप भी एक है.. आखिर मंच पे इस बात को क्यों नहीं रखते? आखिर किस कारण से सब अपने कंटेंट कि चोरी होने पर भी बात को उठाना नहीं चाहते? क्या ये सिर्फ फेसबुक तक ही सीमित रहेगा??
Nityanand Tushar जैसा आपने कहा कि आप कवि सम्मेलन में रस लेने जाते हैं आपके रस में कोई बाधा न पड़े इसलिए वहाँ इस प्रश्न को नहीं उठाया जाता है.,उसके लिये वह स्थान उचित नहीं है , यहाँ हम लोग fb पर इस विषय पर परस्पर चर्चा कर सके हैं और कर रहे हैं ,हम सब अपनी सुविधा से समय मिलने पर अपनी बात कह सकें , इसलिए यहाँ यह बात उठी है .अगर और कवि अपने कंटेंट की चोरी के प्रति सतर्क न होते तो इतने सारे उदाहरण कहाँ से आते, ,जो आपको दिये गए हैं ,ये कवियों की आपसी चर्चा से ही निकल कर आये हैं.कुछ पुराने दिनों की यादें , भावनात्मक,व् पारिवारिक सम्बन्ध कानूनी कार्यवाही के रास्ते में भावनात्मक रूप से आड़े आ जाते हैं ,इसलिए सख्त कदम उठाने से पहले बार- बार सोचा जाता है ,पर जब बहुत जरूरी होगा तो लोग उस विकल्प पर भी विचार करने के लिये मजबूर हो सकते हैं .अभी तक कवि समाज के लोग एक दूसरे के लिये सहयोगी के रूप में ही रहे हैं लेकिन इस तरह के परिवेश में परिस्थितियाँ बदल रहीं हैं जिसक़ा हमें बेहद अफ़सोस है.हम चाहते हैं कि कोई कवि?, कवि किसी के कंटेंट को न चुराए जिससे आपसी सौहार्द बना रहे और जो लोग अब लोगों के आदर्श बनने लगे हैं उनके प्रशंशकों को उनकी कारगुजारियां जानकर धक्का न लगे.
Nityanand Tushar जैसा आपने कहा कि आप कवि सम्मेलन में रस लेने जाते हैं आपके रस में कोई बाधा न पड़े इसलिए वहाँ इस प्रश्न को नहीं उठाया जाता है.,उसके लिये वह स्थान उचित नहीं है , यहाँ हम लोग fb पर इस विषय पर परस्पर चर्चा कर सके हैं और कर रहे हैं ,हम सब अपनी सुविधा से समय मिलने पर अपनी बात कह सकें , इसलिए यहाँ यह बात उठी है .अगर और कवि अपने कंटेंट की चोरी के प्रति सतर्क न होते तो इतने सारे उदाहरण कहाँ से आते, ,जो आपको दिये गए हैं ,ये कवियों की आपसी चर्चा से ही निकल कर आये हैं.कुछ पुराने दिनों की यादें , भावनात्मक,व् पारिवारिक सम्बन्ध कानूनी कार्यवाही के रास्ते में भावनात्मक रूप से आड़े आ जाते हैं ,इसलिए सख्त कदम उठाने से पहले बार- बार सोचा जाता है ,पर जब बहुत जरूरी होगा तो लोग उस विकल्प पर भी विचार करने के लिये मजबूर हो सकते हैं .अभी तक कवि समाज के लोग एक दूसरे के लिये सहयोगी के रूप में ही रहे हैं लेकिन इस तरह के परिवेश में परिस्थितियाँ बदल रहीं हैं जिसक़ा हमें बेहद अफ़सोस है.हम चाहते हैं कि कोई कवि?, कवि किसी के कंटेंट को न चुराए जिससे आपसी सौहार्द बना रहे और जो लोग अब लोगों के आदर्श बनने लगे हैं उनके प्रशंशकों को उनकी कारगुजारियां जानकर धक्का न लगे.
और अब आपके लिये एक शे`र
जैसे वो हैं हम तो ऐसे हो नहीं सकते `तुषार`
जैसे वो हैं हम तो ऐसे हो नहीं सकते `तुषार`
हम उन्हें भी चाहते हैं दुश्मनों को क्या पता - नित्यानंद `तुषार`
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