ग़ज़ल
हवा जब तेज़ चलती है तो पत्ते टूट जाते हैं
मुसीबत के दिनों में अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं
बहुत मजबूर हैं हम झूठ तो बोला नहीं जाता
अगर सच बोलते हैं हम तो रिश्ते टूट जाते हैं
...
बहुत मुश्किल सही फिर भी मिज़ाज अपना बदल लो तुम
लचक जिनमें नहीं होती तने वे टूट जाते हैं
भले ही देर से आए मगर वो वक़्त आता है
हक़ीक़त खुल ही जाती है मुखौटे टूट जाते हैं
अभी दुनिया नहीं देखी तभी वो पूछते हैं ये
किसी का दिल, किसी के ख्व़ाब कैसे टूट जाते हैं
'तुषार' इतना ही क्या कम है तुम्हें वो देखते तो हैं
अगर कुछ रौशनी हो तो अँधेरे टूट जाते हैं - नित्यानंद `तुषार`
मुसीबत के दिनों में अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं
बहुत मजबूर हैं हम झूठ तो बोला नहीं जाता
अगर सच बोलते हैं हम तो रिश्ते टूट जाते हैं
...
बहुत मुश्किल सही फिर भी मिज़ाज अपना बदल लो तुम
लचक जिनमें नहीं होती तने वे टूट जाते हैं
भले ही देर से आए मगर वो वक़्त आता है
हक़ीक़त खुल ही जाती है मुखौटे टूट जाते हैं
अभी दुनिया नहीं देखी तभी वो पूछते हैं ये
किसी का दिल, किसी के ख्व़ाब कैसे टूट जाते हैं
'तुषार' इतना ही क्या कम है तुम्हें वो देखते तो हैं
अगर कुछ रौशनी हो तो अँधेरे टूट जाते हैं - नित्यानंद `तुषार`
2 comments:
Wah wah behtreen gazal
हकीकत खुल ही जाती है मुखौटे टूट जाते हैं |तकलीफ मुझे बहुत हुई ,बेहद पसंद करता था मैं भी,कोई ज़रुरत नहीं थी इसकी पर क्यूँ?शायद हमारी चिकित्सीय ज़बान में इसे "क्लेप्टोमेनिया "कहते हैं|बिमारी है ,दवा की ज़रुरत है उन्हें ,आपसे बेहतर हकीम और कोई क्या हो सकता है|अपने अंदाज़ में आप समझाएं शायद पश्चाताप हो ,पीप बह कर निकल जाये ,बीमार अच्छा हो जाये | शायद|वर्ना सख्ती के सारे रास्ते खुले हैं |वरना तुषार का वार घातक ही होगा|
Post a Comment