Tuesday, February 8, 2011

नालायकों को लायक, इस दौर ने बनाया - नित्यानंद `तुषार




  • Preeti Rawat

    नित्‍यानंद जी
    में ये तो नही जानती की आपक जो कह रहे हो उसकी सच्‍चाई क्‍या है, ये या तो आप जानते हैं या कह जिनके लिए कह रहे है वो जानते हैं क्‍योकि हमने पहले उन्‍हे सुना हैं तो यह कहना की आपकी हैं या उनकी हम इसे सत्‍यापित नही कर सकते है

    परंतु ...में यह जरूर कहना चाहती हु कि उन्‍होने नयी पीडी को कविता सुनना और कविता सुनने का सलिका जरूर सिखाया हैं नही तो जवान पीडी सिर्फ पब पर जाने का ही र्शौक रखती थी , कविताऔ में क्‍या जादु हैं ये तो वो जानती ही नही थी, ये उन्‍होने ही सिखाया हैं

    देखा जाये तो अच्‍छी कविताओं को सुनना शायद जवान पीडी उन्‍ही से सीखी है,और दुसरे अच्‍छे कवियो को भी,

    में उनकी पैरवी तो नही कर रही हु पर ये जरूर जानती हु कि नयी पीडी को इस युग में उन्‍होने कविताओं से जुडा जो दुसरे किसी कवि ने नही कियाा

    और ये भी मानती हु कि उनसे अच्‍छी कवितायें लिखने वाले भी बहुत सारे कवि है जिन तक अभी हम नही पहुचे पर उन्‍हे समझ पाये और सुन पाये ये जरूर उनकी कौशिशो का नतीजा हैं

    इसे नकारना भी गलत ही होगा ...........................

    or aapki kalam me bhi gajab ka jadu hai ye bhi mana hamne......




  • Ankit Shukla ‎@preeti ji...apke hamare wichar bht milte hai, ye to ham bhi mante hai ki TUSHAR JI BHT ACCHA LIKHTE HAI...




  •  
    Nityanand Tushar

    ‎@preeti ji rawat ये ग़ज़ल की पंक्ति जिस पर हम लोग चर्चा कर रहे हैं, 22 अगस्त 1992 को लिखी गई थी तथा 1996 में मेरे ग़ज़ल संग्रह `सितम की उम्र छोटी है` में छपी थी , जिसे लोगों ने ख़रीदा था ,वर्ल्ड बुक फेयर 1996 में भी इसकी का...फ़ी बिक्री हुई , ...फिर ये किताब इतनी पोपुलर हुई कि `साये में धूप ` के बाद ग़ज़लों की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब बन गई ,और ये तो तब हुआ जब किसी बड़े नेटवर्क से इसे बेचा नहीं गया था, नहीं तो जाने क्या हाल होता ,बड़े नेटवर्क से न बेचे जाने के पीछे कारण ये था कि लोग खरीद सकें , क्योंकि साहित्यिक किताबें महँगी होतीं हैं और मैं लोगों की पहुँच में कीमत रखना चाहता था ,ये किताब अब पांचवीं बार छपकर आएगी ,किसी मोस्ट पोपुलर कवि की ,किसी सेलेब्रिटी कवि की ,कोई ग़ज़लों की किताब इतनी बार आज तक नहीं छपी है (जबकि वो बड़े दावे के साथ शायरी करने और श्रोताओं के दाद न मिलने की दशा में कल से शायरी छोड़ने क़ा दावा करते हैं ,शायरी तो आप तब छोड़ेंगे जब आप शायरी जानते हों,जब आप चार लाइन की तीन तुक भी ठीक से नहीं मिला सकते तो आप शायरी कहाँ जानते हैं ,जो आप शायरी छोड़ेंगे ),आप चाहेंगी तो आपको उन हज़ारों लोगों में से कुछ उन लोगों के एड्रेस भेज दिये जायेंगे जिन्होंने ये किताब खरीद रखी है उनसे आप पुष्टि करके इसे सत्यापित कर सकती हैं ,इस पुस्तक कि समीक्षाएं भी आपके इस पंक्ति के सुनने से पहले छप चुकी हैं अख़बारों और पत्रिकाओं में ,उनकी छायाप्रतियां भी आपको भेज दी जाएगी ,
    अगर हमें ज़्यादा मजबूर किया जायेगा तो तथा कथित सेलेब्रिटी कवि ? के लिफ्टिंग के और उद्धरण fb पर खोलने के लिये मजबूर होना पड़ेगा( जिससे वो और बेनकाब हों जायेंगे ) ,जिनमें से कुछ अभी सिर्फ़ श्री अंकित शुक्ला जी को मेसेज द्वारा उनकी जिज्ञासा के क्रम में भेजे गए हैं ,

    मेरा किसी से कोई विरोध नहीं है , लेकिन कोई नई पीढी को लगातार गड्ढे में धकेलता चला जाये ,उसे छलता रहे ,कविता के नाम पर अनर्गल बकवास सुनाता रहे , और वो जब मौक़ा लगे, दूसरों की पंक्तियाँ और टिप्पणियाँ उडाकर मासूमों की निगाह में आदर्श बनता रहे, ,क्या ये उचित है ? .ज़रा कल्पना कीजिये कि यदि सच्चाई उन सभी लोगों तक गई , जिनको अभी कुछ पता ही नहीं है और जो किसी को आदर्श मानकर उसका फैन बनने में गर्व क़ा अनुभव कर रहे हैं तो उनकी क्या मनोदशा होगी ? .इसीलिए हमने खुलकर नाम नहीं लिखा है , हम संकेत मैं बात कर रहे हैं . क्या आप चाहेंगे कि किसी सच्चे कवि के हक़ पर डाका पड़े ?
    इस शे`र के साथ बात समाप्त करता हूँ जो की `शुक्रवार` नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में छपी मेरी ग़ज़ल में है

    नालायकों को लायक, इस दौर ने बनाया
    जो जानते नहीं कुछ ,वे टॉप कर रहे हैं - नित्यानंद `तुषार`




  • Nityanand Tushar

    ‎@preeti ji rawat Aur haan ,jahaan tak nai peedhi ko kavitaon se jodne ka savaal hai to aapko bata dein ki` sitam ki umr chhoti hai` ke hazaron paathkon mein nayee peedhee ki kai badi sankhya hai. Ab bhi yadi yakin na aata ho to ek baar wor...ld book fair mein prarambh prakashan ke staall par aakar dekh lena ,ye sach aapko apni aankhon se hi dikh jayega ,ki kitne loghamari kitabein khareedate hain ar kitne autograph ke liye line lagaate hain .Maine aisi ghatnaaon ko photo ke layak hi nahin samjha aur kisi ne in cheezon ko hi bada mahattavpurn samjhaaur is tarah ke photograph net par lagaye ,isi tarike se aur aise hi any tarikon se masoomon ko bhramit kiya hai .



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