Wednesday, February 9, 2011

इक आग है सीने में ,तस्वीर बदलने की - नित्यानंद `तुषार`

ग़ज़ल

जो सोच रहे हैं हम , वो करके दिखाना है
अंधियार मिटे जिससे , वो दीप जलाना है

इक आग है सीने में ,तस्वीर बदलने की
तुम  साथ ज़रा दे दो , ये मुल्क़ सजाना है

शोहरत के लिये यारों ,हम शे`र नहीं कहते
जो नींद में डूबे हैं ,उनको ही जगाना है

उस मोड़ पे हैं अब हम ,कोई राह न सूझे है
ख़ुद को भी बचाना है , रिश्ता भी निभाना है

अहसान भुलाने में ,दो पल भी न लगते हैं
उम्मीद न रक्खो तुम , खुदगर्ज़ ज़माना है - नित्यानंद `तुषार`

(वर्तमान साहित्य , दिसम्बर 2010 में प्रकाशित)

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