Wednesday, January 5, 2011

समर्पण हो अगर पूरा, तो पत्थर भी पिघलते हैं ----नित्यानंद `तुषार

एक भाव,दो रंग
पहाड़ों से गुज़रते हैं,तभी झरने निकलते हैं
पसीना जो बहाते हैं,उन्हीं के दिन बदलते हैं
तुम्हें मुमकिन न लगता हो,मगर मेरा तजुर्बा है
समर्पण हो अगर पूरा, तो पत्थर भी पिघलते हैं
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पहाड़ों से गुज़रते हैं,तभी झरने निकलते हैं
पसीना जो बहाते हैं,उन्हीं के दिन बदलते हैं
तुम्हें मुमकिन न लगता हो, मगर मेरा ये अनुभव है
अगर पूरा समर्पण हो, तो पत्थर भी पिघलते हैं ----नित्यानंद `तुषार