Saturday, January 8, 2011

हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते----नित्यानंद `तुषार

हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते
बहुत चाहो जिन्हें दिल से वही अक्सर नहीं मिलते

ज़रा ये तो बताओ तुम हुनर कैसे दिखाएँ वो
यहाँ जिन बुत-तराशों   को सही पत्थर नहीं मिलते

हमें ऐसा नहीं लगता यहाँ पर वार भी होगा
यहाँ के लोग हमसे तो कभी हँसकर नहीं मिलते

हमारी भी तमन्ना थी उड़ें आकाश में लेकिन
विवश होकर यही सोचा सभी को पर नहीं मिलते

ग़ज़ब का खौफ छाया है हुआ क्या हादसा यारो
घरों से आजकल बच्चे हमें बाहर नहीं मिलते

हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी
जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते

3 comments:

Deepak Saini said...

सुन्दर गज़ल
हर शेर बेहतरीन

Sanjay Grover said...

ज़रा ये तो बताओ तुम हुनर कैसे दिखाएँ वो
यहाँ जिन बुत-तराशों को सही पत्थर नहीं मिलते

yah sher khas-taur par achchha lagaa.

Do not said...

isme koi do ray nahi ahi ki aap ke sher aur gajal and kavita dono behatar hai to ise use kariye ham naye young logo ke samane laye hamara to yahi manana hai ki .....ham ek talab ki tarah hai hame pani ki jarurat hai wo kahi se bhi aaye ganga se ya bhi nala se .....