आज फिर काफ़ी दिन बाद आपसे बात कर पा रहे हैं पर सफ़र की थकान भी अपनी जगह है पहले सोचा कि फिर कभी, फिर सोचा कि इसी तरह दिन निकलते चले जाते हैं और अंतराल बढ़ता जाता है , इसलिए लैपटॉप ऑन कर ही लिया है .आज एक ग़ज़ल आपके लिये दे रहे हैं ,ये ग़ज़ल इंडिया न्यूज़ नामक पत्रिका में काफ़ी पहले प्रकाशित हो चुकी है आप ग़ज़ल क़ा आनंद लें .
ग़ज़ल
तेरे क़रीब वो देखा नहीं गया
वो ले गया तुझे,रोका नहीं गया
यादें उभर गईं,बातें निखर गईं
मैं रात भर जगा ,सोया नहीं गया
तुझसे बिछुड़ गए ,फिर भी जुड़े रहे
तेरे ख़याल को तोडा नहीं गया
कितने बरस हुए , तेरी खबर नहीं
तेरे सिवाय कुछ ,सोचा नहीं गया
हर मोड़ पर मिले ,कितने हँसीन रंग
फिर भी कभी ये दिल, मोड़ा नहीं गया
कुछ साल एक दम, आकर खड़े हुए
ख़त देख तो लिया ,खोला नहीं गया
आसान था जिसे , कहना बहुत तुझे
वो ढाई लफ्ज़ भी , बोला नहीं गया - नित्यानंद `तुषार`
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