कुछ अयोग्य लोग सरकारी पैसे पर हिन्दी सम्मेलनों
में हिन्दी के नाम पर विदेश में मौज कर रहे हैं ,कुछ जोड़ तोड़ विहीन लोग
देश में ही रह कर हिन्दी साहित्य के भण्डार में श्रीवृद्धी कर रहे हैं,
खैर ,ये शे`र पढ़िए -
अगर ये हो सके मुमकिन ,उन्हें इतना ही बतला दो
जो, जिंदा हैं तो क्यूँ अकडें ,अकड़ मुर्दों में होती है - -नित्यानंद `तुषार`
खैर ,ये शे`र पढ़िए -
अगर ये हो सके मुमकिन ,उन्हें इतना ही बतला दो
जो, जिंदा हैं तो क्यूँ अकडें ,अकड़ मुर्दों में होती है - -नित्यानंद `तुषार`
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