Monday, October 1, 2012

सतरंगी शाम धीरे- धीरे ढल रही है- -नित्यानंद `तुषार`

अब
जब भी मैं, उसको फ़ोन मिलाता हूँ
ख़्यालों की नदी में डूब जाता हूँ
`Hi`,उसकी आवाज़ आती है
और वो ख़ामोश हो जाती है
मैं hello कहता हूँ

वह फिर भी ख़ामोश रहती है
मैं कहता हूँ कि तुम कुछ बोल नहीं रही हो
तुम ख़ुद को खोल नहीं रही हो
`i am listening you`
और वह फिर ख़ामोश हो जाती है
उस वक़्त ऐसा लगता है कि
सतरंगी शाम धीरे- धीरे ढल रही है
और वो एक परी की तरह मेरे ज़ेहन में चल रही है
मैं फिर कहता हूँ कि तुम कुछ तो बोलो
वह कहती है
`i am listening you`
और मैं सोचता हूँ कि जो राह उसे चुननी थी
अगर उसने सही समय पर, वह राह चुनी होती
मेरे और अपने दिल की आवाज़ सुनी होती
जो ख़्वाब एक शाम को
हम दोनों ने मिलकर बुना था
जब एक दूसरे की धडकनों को सुना था
अगर उसने सच में ही
मुझे सुना होता ,
मेरे और अपने दिल की आवाज़ को सुना होता
तो आज मेरी और उसकी धडकनों के बीच,
क्या कोई फ़ासला होता - -नित्यानंद `तुषार`

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