ग़ज़ल
मैं तुम्हारी हूँ ,कहा था तुमने
दिल को फिर ज़ख्म दिया था तुमने
मेरी बाहों में सिमट कर इक दिन
रेशमी ख़्वाब बुना था तुमने
आज जब लौट के आया हूँ मैं
याद है वो, जो ,कहा था तुमने
इक सज़ा काट रहा हूँ तुम बिन
मुझसे मुँह फेर लिया था तुमने
शाम का वक़्त रहा था उस दिन
हाथ, हाथों में लिया था तुमने
इश्क़ दम तोड़ रहा था जिस पल
दोस्त बनने को कहा था तुमने
क्यूँ तुम्हें याद नहीं आता ये
प्यार मुझसे ही किया था तुमने - -नित्यानंद` तुषार`
दिल को फिर ज़ख्म दिया था तुमने
मेरी बाहों में सिमट कर इक दिन
रेशमी ख़्वाब बुना था तुमने
आज जब लौट के आया हूँ मैं
याद है वो, जो ,कहा था तुमने
इक सज़ा काट रहा हूँ तुम बिन
मुझसे मुँह फेर लिया था तुमने
शाम का वक़्त रहा था उस दिन
हाथ, हाथों में लिया था तुमने
इश्क़ दम तोड़ रहा था जिस पल
दोस्त बनने को कहा था तुमने
क्यूँ तुम्हें याद नहीं आता ये
प्यार मुझसे ही किया था तुमने - -नित्यानंद` तुषार`
2 comments:
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
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