Wednesday, March 2, 2011

उसके होंठों पर रही जो, वो हँसी अच्छी लगी - - नित्यानंद `तुषार`

उसके होंठों पर रही जो, वो हँसी अच्छी लगी
उससे जब नज़रें मिलीं थीं वो घड़ी अच्छी लगी

उसने जब हँसते हुए मुझसे कहा` तुम हो मेरे `
दिन गुलाबी हो गए ,ये ज़िन्दगी अच्छी लगी
...
पूछते हैं लोग मुझसे , उसमें ऐसा क्या है ख़ास
सच बताऊँ मुझको उसकी सादगी अच्छी लगी

कंपकंपाती उँगलियों से ख़त लिखा उसने `तुषार`
जैसी भी थी वो लिखावट वो बड़ी अच्छी लगी - - नित्यानंद `तुषार`